गुम

जब तन्हा रात के प्यालों में,
चाँद कोई उतरता है
और तंग नींद के दामन में,
ख़्वाब कोई निखरता है
ठंडी काली सड़कें जब,
चलते-चलते थम जाती हैं
मैं तुम से मिल कर के तुम में,
पल-पल गुम हो जाता हूँ

जब गर्म रेत से साहिल पर,
समंदर नर्म बिखरता है
देकर ख़ुशियाँ पल भर की,
पल भर बाद बिछड़ता है
तेज़ लहरों की शोर में जब,
ये किस्से नम हो जाते हैं
मैं तुम से मिल कर के तुम में,
पल-पल गुम हो जाता हूँ

जब पूस की कड़वी रातों में,
हवाएँ ख़ुश्क हो जाती हैं
और बहारों की तितलियाँ,
मायूस कहीं सो जाती हैं
अश्क़ से मोती आकर के,
तब पत्तों पर बिछ जाते हैं
मैं तुम से मिल कर के तुम में,
पल-पल गुम हो जाता हूँ

जब कभी पुरानी यादों से,
ख़्याल कोई चुराता हूँ
बैठा तन्हा दरिया पर, 
मैं रेत सा घुलता जाता हूँ
फिर बैठे-बैठे सुबह-ओ-शाम,
जब देर रात हो जाती है
मैं तुमसे मिल कर के तुम में,
पल-पल गुम हो जाता हूँ


साकेत




ख़ुश्क - dry
अश्क़ - tears

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