फिर तारों तले मिलने के बहाने याद आए
आज आसमाँ देखा, वो ज़माने याद आए
हर एक वरक़ पर हमने तुमको लिखा था
एक एक कर जो वाकये पुराने याद आए
और शाम छेड़ गयी इक धुन मायूसी की
हमें उस नदी किनारे, वो तराने याद आए
शब-ए-ख़्वाब, सहर-ए-धूप में पिघल गए
हमने आँखें खोली, तो फसाने याद आए
मैकदे बैठे रात भर, और देखते रहे शराब को
ज़ुल्फ़ों की छाँव, आँखों के पैमाने याद आए
एक वायदों की लकीर थी और आरज़ू ए सैलाब
कुछ निभा चले थे हम, कुछ निभाने याद आए
- साकेत
वरक़ - paper
सहर - morning
मैकदा - bar, tavern
2 comments
मैकदे बैठे रात भर, और देखते रहे शराब को
ReplyDeleteज़ुल्फ़ों की छाँव, आँखों के पैमाने याद आए
Great piece of writing.. :-)
Thanks mota 😀
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