ख़्वाब ही तो हैं

कुछ अदना से हैं, कुछ बचकाने 
बेहिसाब ही तो हैं,ख़्वाब ही तो हैं 

वो तुम्हारी सवाल करती आँखें,
मेरी आंखों में, जवाब ही तो हैं  

भूखी सो जाती है मेरी राह देखते
मां की कुछ आदतें, ख़राब ही तो हैं 

मुट्ठी में कायनात समेटने जैसा है
कहने को वैसे, क़िताब ही तो हैं

बनके खुशबू बिखरे हैं ताउम्र
जो सूख चले है, गुलाब ही तो हैं

क्या सबूत चाहिए तुझे और मुंसिफ!
सड़कों पे बिखरा है, शहाब ही तो है

ग़ालिब! वो फ़कीर जो शहंशाह था 
ये नज़्म ये गज़लें, निसाब ही तो हैं



साकेत



मुंसिफ - judge
शहाब - dark red colour
निसाब - wealth, fortune

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