सैलाब-ए-मोहब्बत लाया है
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दिल ने इश्क-ए-नज़राना..
बस अश्कों में ही पाया है
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कैसे रोकूँ ये सैलाब..
कोई देदे एक ज़वाब |
क्यों मेरे लहू का रंग..
है क्यों रंग-ए-गुलाब |
जब खून किसी का बहता है..
दर्द की एक कहानी है |
फिर भी ये लाल रंग..
क्यों इश्क-ए-निशानी है |
लाल रंग से रोके तू..
क़तार तेरी इन सड़कों पर |
तेरी यही कहानी है..
फिर भी ये लाल रंग...
क्यों इश्क-ए-निशानी है ?
फिर चाहा तुझे, तेरे देखे
ख्व़ाब...
मिला मुझे वो एक ज़वाब |
क्यों मेरे लहू का रंग...
है ये रंग-ए-गुलाब |
हर खून की बूँद में तू
बसती...
मुझ में छुपती खिलती
हँसती |
गर बूँदें खून की खो दूँ
मैं...
तुझको तो भी खो दूँ मैं |
लहू में इश्क जो बसा तेरा..
कैसे मैं बयाँ करूँ ?
तेरे कसमे वादों को..
कैसे रवा-दवा करूँ ?
दिल को मिला वो एक जवाब...
कर दिया जब इज़हार-ए-गुलाब |
इसलिए मेरे लहू का रंग..
है ये रंग, रंग-ए-गुलाब.....
- निखिल शर्मा
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