पलकों पे सपने सजाये
नींदों में उनको बिठाये
डूबे हसीन तरानों में
फिर अनजाने से गानों में
पिघले से कुछ प्यार की बातें
न ढलती थी कुछ ऐसी रातें
कुछ सरगम कुछ सुर ताल नए
कुछ ऐसे थे बेहाल हुए
जीया तुझे फिर इक लम्हा
फिर उन गलियों में नज़रें बिछाये
जहाँ देख हमें, थे तुम मुस्कुराए
उन बहके से अफसानों में
फिर गिने गए दीवानों में
परेशान हम बौखलाहटें
कुछ ऐसी थी तेरी आहटें
कुछ तुम जो दस्तक देते गए
उन सारे पलों को समेटे हुए
फिर विधालय में पाठ पढाये
प्यार के जो दिए जलाये
फिर नए हम अंजानों में
कुछ ऐसे थे नादानों में
फिर धडके दिल तेरे हाथ तो थामें
बुझते सूरज की वो जलती शामें
जो तेरी बाहों में खोते गए
मदमस्त से हम जो होते गए
जीया तुझे फिर इक लम्हा
आंखे खुली, मैं फिर तन्हा
तेरी यादों में मैं फिर गिरता हूँ
फिर गिरता तेरी यादों में
कुछ ऐसे मई संभालता हूँ
हैं बस यादें तेरी पास मेरे
प्यारे से एहसास तेरे
जीता हूँ, तुझे जी जाऊँगा
नशा तेरा जब पी जाऊँगा
फिर आएगा वो इक लम्हा
1 comments
bahut badhiya kavita,dil ki baat bayan kar rahi hai
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