रुका हुआ सा है, क्यूँ घर नहीं जाता
ये रास्ता शायद उसके शहर नहीं जाता |
जुदा होना, होकर टूट जाना, मुक्क़दर है उसका
समंदर लाख चाहे, तूफ़ान, ठहर नहीं जाता
ये लोग ही हैं जो सींचते, फिर पत्थर मारते हैं
लोग ही आते हैं पास कभी, शज़र नहीं जाता |
कायनात से पूछना फ़र्क कभी माँ और बेटे में
दरिया मिटकर भी मिलती है, समंदर नहीं जाता |
मिटे तो मिटेंगे इक दिन ख़ाक में मिल जायेंगे
बस यूँही मिट जाने का, ये डर नहीं जाता |
सियासत हुनर है ज़ख्म देकर ज़हर लगाने का
वक्त के साथ ज़ख्मों का असर नहीं जाता |
कुछ तो बात होगी जो अब सजदे क़ुबूल नहीं उसे
वरना दर से कोई उसके, इस कदर नहीं जाता |
शादाब सा गाँव था, वो खराबों सा शहर
परिंदा कोई, अब, उधर नहीं जाता |
हादसे में अपने गवाएँ, आँखें भी चली गईं
बस आँखों के आगे से, वो मंज़र नहीं जाता |
दूर मुल्क, उसके बच्चे कहीं भूखे न सो जाएँ
कहीं हर रात निवाला पेट के अंदर नहीं जाता |
रुका हुआ सा है...घर नहीं जाता...
- साकेत
कायनात - nature, universe
शज़र - tree
शादाब - verdant, blooming green
ख़राब - spoiled, ruined
2 comments
Awesome (Y)
ReplyDeleteWahhhh
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