किस खुदा के हुक्म से ये धुआं उठा है
मेरे सामने ये हसीं शहर मलबा हुआ है
वो किसी मज़हब का हो फ़र्क़ नहीं पड़ता
मासूम खून जो सड़कों पर बिखरा हुआ है
भूख का वास्ता रोटी से है, जन्नत से नहीं
उसे जवाब में किस रंग का झंडा मिला है
एक-एक सींक जोड़, आशियाँ सजाया था
जिस परिंदे को आज घोसला उजड़ा मिला है
जन्नत उजाड़ दी दूजी जन्नत की चाहत में
माँ की लाश पर बिलखता बच्चा मिला है
मुल्क तो बिस्मिल का भी था, अशफ़ाक़ का भी
किसको मुज़फ्फरनगर, किसको गोधरा मिला है
- साकेत
Ghazal
19 comments
Bhadhiya hai sir...
ReplyDeleteMeans a lot. Stay tuned!
DeleteBadhiya..
ReplyDeleteMeans a lot. Stay tuned!
DeleteEk number Saket 👍👍
ReplyDeleteThanks for reading! Stay tuned.
DeleteBahut acha likhe hai sir...👌👌
ReplyDeleteThought provoking..hard hitting piece.
ReplyDelete_/\_
Deleteआग लगाना याद रहा पर आग बुझाना भूल गए।।
ReplyDeleteIsko bhi poora kiya jaega. Motu
DeleteBahut badhiya hai.. Umda!!
ReplyDeleteThanks babbu 😀
Deleteबहुत खूब��
ReplyDeleteधन्यवाद पाठक भाई 😀
Deleteek number !!!!
ReplyDeleteThanks for reading. Stay tuned.
DeleteIt's awesome 👏
ReplyDeleteधन्यवाद मोहतरमा 😇😇
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