मलबा हुआ है



किस खुदा के हुक्म से ये धुआं उठा है
मेरे सामने ये हसीं शहर मलबा हुआ है

वो किसी मज़हब का हो फ़र्क़ नहीं पड़ता
मासूम खून जो सड़कों पर बिखरा हुआ है

भूख का वास्ता रोटी से है, जन्नत से नहीं
उसे जवाब में किस रंग का झंडा मिला है

एक-एक सींक जोड़, आशियाँ सजाया था
जिस परिंदे को आज घोसला उजड़ा मिला है

जन्नत उजाड़ दी दूजी जन्नत की चाहत में
माँ की लाश पर बिलखता बच्चा मिला है

मुल्क तो बिस्मिल का भी था, अशफ़ाक़ का भी
किसको मुज़फ्फरनगर, किसको गोधरा मिला है

साकेत


19 comments

  1. Bahut acha likhe hai sir...👌👌

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  2. Thought provoking..hard hitting piece.

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  3. आग लगाना याद रहा पर आग बुझाना भूल गए।।

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    1. धन्यवाद पाठक भाई 😀

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    1. धन्यवाद मोहतरमा 😇😇

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