गलती...हर बार हो गई


गुज़रा वक्त कभी वापस नहीं आता...

अगर आता तो शायद आज ये सब लिखने की ज़रूरत नहीं पड़ती...खैर कुछ और वक्त गुज़र गया है...

हर बार की तरह कुछ इस बार भी मजबूरियों आदि...इत्यादि का रेडी-मेड बहाना बिलकुल तैयार है शब्दों की थाली में परोसे जाने को...

पर शायद आज इमोशनल ब्लैक-मेलिंग से काम चल जाएगा...



बहाने बनाने की आदत है किसी लड़के को...ये आदत...उसकी आज की नहीं है...पर कुछ है जो इस बहाने बनाने की आदत को शायद...लाज़मी बना देता है...उस लड़के के लिए...
कोई लड़का है...१४ साल किसी इमारत से दूर भागने के लिए रोज सुबह बिस्तर पर माँ के सामने बहाने बनाता है...
कोई लड़का है...गलती करने के बाद डाँट से बचने के लिए बहानों के किले बना देता है....

१४ साल गुज़र गए...वक्त बदल गया...शख्स बदल गए...शाख्शियतें बदल गईं...
लोग कहते हैं....वो लड़का भी बदल गया है...
लोग जानते हैं...उसकी बहाने बनाने की आदत नहीं बदली...
पर बहाने बनाने की वजहें बदल गई हैं...लोग नहीं जानते ! शायद...

लोग कहाँ समझेंगे !
वही लड़का जो १४ साल किसी इमारत से दूर भागने के लिए रोज सुबह बिस्तर पर माँ के सामने बहाने बनाता था...आज १४ साल बाद उस ईमारत के नज़दीक जाने के बहाने ढूँढता रहता है...
वही लड़का जो गलती करने के बाद डाँट से बचने के लिए बहानों के किले बना देता था....आज गलतियाँ सिर्फ इस उम्मीद में करता है कि कोई हक से डांट पिला जाए...
शायद! लोग नहीं समझेंगे....





बैसाखी थी...खेतों में
खुशनुमा बौछार हो गई
फिर कोई सैलाब आया...और
फसल बेकार हो गई

कोई ख्वाहिश तुतलाती फिरती थी
मेरे बचपन की बस्तियों में
शगल के शोर में हर आवाज़ दबी
बस्तियाँ...बाज़ार हो गईं

साथ पगडंडियों पर चलते थे कभी
मैं...और मेरी हमउम्र...जिंदगी
हलचल हुई...मुझे इल्म न हुआ
जिंदगी...कब इतनी समझदार हो गई

जिंदगी...कब इतनी समझदार हो गई

आसमाँ से सलामती की दुआएँ
बीमार बेटे के लिए 'माँ' दवाएँ लाती थी
'खून' ने भी क्या फ़ितरत बदली
'बूढी माँ' जब बीमार हो गई

बड़ा तवील हो चला है अब
माँ से बेटे का...फासला
आज मौत ने फैसला सुनाया कि
जिंदगी...कसूरवार हो गई

जिंदगी...कसूरवार हो गई

तैश, खुशी, गम, हँसी दरम्यान
चल रही थी जिंदगी
आज अचानक चलते-चलते
मौत से आँखे-चार हो गई

मौत का ज़िक्र आने पर
फ़िक्र 'तेरी' कर लेता था
जिंदगी...तुझे समझने में
गलती...हर बार हो गई...

गलती...बार-बार हो गई...




साकेत 



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