लोग कहते थे "दिल्ली ऊँचा सुनती है".... मैं नहीं कहता था, ये लोग कहते थे। कल दिल्ली एक बेबस लड़की की चीत्कारों को भी ना सुन पाई.....शायद लोग ठीक ही कहते थे। आज हंगामा बरपा है की दोषी कौन? आरोपी को फाँसी दो। ज़िम्मेदारी किसकी है? सरकार और पूरे पुलिस महकमे ने गंध फैला रखी है। वगैरह-वगैरह...तो आखिर ज़िम्मेदारी किसकी बनती है? केवल सरकार और पुलिस की??
दिल्ली ऊँचा सुनती है क्योंकि लोग ऊँचा सुनते है.....सरकार और महकमे पर पल्ला झाड़ देना बहुत पुराना जुगाड़ है अपनी जिम्मेदारियों से मुँह चुराने का....दुष्कर्मी से ज्यादा बड़ा आरोपी वह समाज होता है जिसका वह कभी अभिन्न अंग रह चुका है। कल की घटना के लिए केवल एक शख्स ज़िम्मेदार है और वो है.....'हम'
हंगामा क्यों उठाते हो ?
हर दहकते बवाल पर।
क्यों मढ़ जाते हो कलंक सारे
बस 'सिस्टम' के कपाल पर।।
क्यों मढ़ जाते हो कलंक सारे
बस 'सिस्टम' के कपाल पर।।
ज़िम्मेदार कौन? की बहस में सारे...
ऊंचे सुर बलखाते हैं।
ज़िम्मेदारी के आईने के आगे...
सब नग्न-बदन शर्माते हैं।।
इस मजलिस में सब नंगे हैं...
सबकी एक बिमारी है।
क्यों खड़ी हो सरकार सिर्फ दोषी...
जब सरकार भी तुम्हारी है।।
दिल्ली आज दहली है तो...
सारा भारत दोषी है।
अब भी फंसे हो अधेड़-बुन में...
ये कैसी मदहोशी है?
शाख पर बैठा हर उल्लू दिन में,
चोर को दोषी ठहराता है।
रात हुई चोरी का दोषी तो....
वह उल्लू भी कहलाता है।।
हाथ गंदे नहीं करोगे...
समाज कहाँ धुल पाएगा।
यह कोई विज्ञापन नहीं जो...
'टाईड' दाग धो जाएगा।।
ज़िम्मेदारी से कितना भागोगे...
और भाग कहाँ जा पाओगे।
ये घटनाएँ फिर होंगी और...
दोषी तुम कहलाओगे !
बहन की राखी सहम जाएगी...
माँ से नज़र चुराओगे।
ये घटनाएँ फिर होंगी और...
दोषी..................!!!
- साकेत
4 comments
Loved it :)
ReplyDeletethanks...
ReplyDeletevery true...and has been written with a lot of heart...
ReplyDeleteplus the images are complementing the issue very well...
thanks for reading....
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