ज़माने याद आए
फिर तारों तले मिलने के बहाने याद आए
आज आसमाँ देखा, वो ज़माने याद आए
हर एक वरक़ पर हमने तुमको लिखा था
एक एक कर जो वाकये पुराने याद आए
और शाम छेड़ गयी इक धुन मायूसी की
हमें उस नदी किनारे, वो तराने याद आए
शब-ए-ख़्वाब, सहर-ए-धूप में पिघल गए
हमने आँखें खोली, तो फसाने याद आए
मैकदे बैठे रात भर, और देखते रहे शराब को
ज़ुल्फ़ों की छाँव, आँखों के पैमाने याद आए
एक वायदों की लकीर थी और आरज़ू ए सैलाब
कुछ निभा चले थे हम, कुछ निभाने याद आए
- साकेत
वरक़ - paper
सहर - morning
मैकदा - bar, tavern